बहुत समय हो गया कलम उठाये हुए,
शब्दों की बारीकियों को देखे हुए एक अर्सा हो गया,
शायद कभी स्पर्श किये थे असमतल मृदु ये कागज़ रूखे,
न जाने मेरा दवात का डब्बा कहाँ खो गया।
कोरे कागज़ों पर न जाने कब अल्फ़ाज़ उकेरे थे,
ख़यालों को अपने न जाने कब था खुल के कहा,
बहुत समय हो गया कलम उठाये हुए,
शब्दों की बारीकियों को देखे हुए एक अर्सा हो गया।
A Collection of Poems I have written, some pictures that I have clicked and few articles,poems etc which touched me. :-)
15 Jan 2018
फॉरगॉटन फ्रेंड्स
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