15 Jan 2018

फॉरगॉटन फ्रेंड्स

बहुत समय हो गया कलम उठाये हुए,
शब्दों की बारीकियों को देखे हुए एक अर्सा हो गया,
शायद कभी स्पर्श किये थे असमतल मृदु ये कागज़ रूखे,
न जाने मेरा दवात का डब्बा कहाँ खो गया।

कोरे कागज़ों पर न जाने कब अल्फ़ाज़ उकेरे थे,
ख़यालों को अपने न जाने कब था खुल के कहा,
बहुत समय हो गया कलम उठाये हुए,
शब्दों की बारीकियों को देखे हुए एक अर्सा हो गया।