23 Jan 2012

गुमसुम सी ज़िन्दगी

गुमसुम है क्यूँ तू इतना,
ज़िन्दगी से इतना क्यूँ है खफा,
माना की बड़े हैं गम तेरे,
पर क्यूँ तू ये भूलता है,
उन गम के संग हम भी हैं तेरे,
इन गमों को तू कर दे मेरे!

रोक मत इस दिल-ए-नादाँ को,
मचलने दे इसे खुल कर ज़रा,
थोडा तू हस ले, थोडा तू मुस्कुरा,
माना की बड़े हैं गम तेरे,
पर क्यूँ तू ये भूलता है,
उन गम के संग हम भी हैं तेरे,
इन गमों को तू कर दे मेरे!

गुमसुम है क्यूँ तू इतना,
ज़िन्दगी से इतना क्यूँ है खफा!

11 Jan 2012

निगाहें


इन्सां तो देता लव्जों को ही तव्वजो,
मिला नहीं इन निगाहों को कोई कद्रदां.
इन निगाहों को कम मत समझ ऐ नादाँ,
बिन लव्जों के सब कुछ करें ये बयाँ!

दोस्ती


इकबाल-ए-प्यार की शुरुआत है दोस्ती,
गुल-ए-गुलज़ार, मौसम-ए-बहार है दोस्ती,
औरों का तो पता नहीं ए वक़्त,
पर इस नादां को ज़िन्दगी से प्यारी है दोस्ती!

इक खुशनसीब का मुकम्मल जहां है दोस्ती,
भरी बरसात का मौसम-खुशनुमा है दोस्ती,
औरों का तो पता नहीं ए वक़्त
पर इस नादाँ के लिए तो जिन्द है जहां है दोस्ती!