29 Sept 2016

भेड़ चाल!

इस ठंड में सुबह सुबह,
भेड़ चाल में चले जा रहे हैं,
लोग कहते हैं की हम ज़िंदगी बना रहे हैं|

अपनों को हमने पीछे छोड़ दिया है,
जिंदगी की जंग इसलिए अकेले ही लड़े जा रहे हैं|

पैसे से अमीर हैं हम,
पर अपना ज़मीर बेचे जा रहे हैं|

रूबरू बातचीत आजकल कौन ही करता है,
सारे के सारे व्हाट्स एप/फ़ेसबुक पर फॉर्वर्ड किए जा रहे हैं|

सेहत पर ध्यान नहीं है, एक्सर्साइज़ का टाइम नहीं है,
फास्ट फुड का गटर अपने पेट को बनाए जा रहे हैं|

खाने में आजकल लुत्फ़ नहीं लेते हैं,
बस सूखी ब्रेड कोला के साथ गटके जा रहे हैं|

हमसफ़र को तवजो नहीं देते हैं,
बुध्धू बक्से में घुसे जा रहे हैं|

इस ठंड में सुबह सुबह,
भेड़ चाल में चले जा रहे हैं,
लोग कहते हैं की हम ज़िंदगी बना रहे हैं!

24 Sept 2016

विपत्तियों का पहाड़!

विपत्तियों के इस पहाड़ का क्या किया जाए,
ये सवाल सभी के मन में,
कभी न कभी कुलबुलाहट ज़रूर मचाता है,
एक असमनजस की स्थिति बनाता है,
की
विपत्तियों के इस पहाड़ का अाखिर किया क्या जाए?

अनुभवी लोगों की एसी अवस्था मैं कई राय होती हैं
धैर्य बनाए रखें एसी सीख कई लोग देते हैं
पर सलाह देने के पहले ये नहीं सोचते हैं कि
जो इनसान पतलून गीली करने की कगार पर खड़ा हो
वो अाखिर धैर्य कैसे बनाए रखे?

किंतु मैं भी यही कहूंगा की,
धैर्य बनाए रखें
एसा करने के दो मुख्य कारण ये हैं कि ,
एक तो ये कुछ समय में ये कठिनाई के बादल छट जाएंगे,
अौर दूसरा यह कि अाप गीली पतलून वाले हास्य पात्र बनने से बच जाएंगे।

हास्य पात्र से याद अाया कि
अाजकल पीड़ा का ढिंढोरा पीटना एक शैली बन गया है,
कुछ खुद से अौर कुछ समाचार माध्यमों से,
इस बात से खुद को दूर रहने दें,
क्योंकि ज़्यादातन लोग अापकी पीड़ा का लुत्फ़ उठाएंगे,
अौर जो बाकी हैं वे अापको सान्त्वना देंगे
किंतु अनजाने में ही सही अापके ज़ख्मों पर नमक मल जाएंगे
इसलिए ढिंढोरा कतई न पीटें एवं खुद को अौर पीड़ा से बचाएं
अौर हाँ धैर्य बनाए रखें।

विपत्तियों के इस पहाड़ पर अाप विजय प्राप्त कर लेंगे
क्योंकि
पृथ्वी घूमती रहती है
रात ढलेगी अौर सुबह हो जाएगी
मौसम बदलते रहते हैं
बादलों के बरसने के बाद ही बहार अाएगी
समय का चक्र चलता रहता है
अापकी यह परिस्थिति
या तो खत्म होगी
या पीड़ीयों के लिए सीख बन जाएगी ।