29 Sept 2016

भेड़ चाल!

इस ठंड में सुबह सुबह,
भेड़ चाल में चले जा रहे हैं,
लोग कहते हैं की हम ज़िंदगी बना रहे हैं|

अपनों को हमने पीछे छोड़ दिया है,
जिंदगी की जंग इसलिए अकेले ही लड़े जा रहे हैं|

पैसे से अमीर हैं हम,
पर अपना ज़मीर बेचे जा रहे हैं|

रूबरू बातचीत आजकल कौन ही करता है,
सारे के सारे व्हाट्स एप/फ़ेसबुक पर फॉर्वर्ड किए जा रहे हैं|

सेहत पर ध्यान नहीं है, एक्सर्साइज़ का टाइम नहीं है,
फास्ट फुड का गटर अपने पेट को बनाए जा रहे हैं|

खाने में आजकल लुत्फ़ नहीं लेते हैं,
बस सूखी ब्रेड कोला के साथ गटके जा रहे हैं|

हमसफ़र को तवजो नहीं देते हैं,
बुध्धू बक्से में घुसे जा रहे हैं|

इस ठंड में सुबह सुबह,
भेड़ चाल में चले जा रहे हैं,
लोग कहते हैं की हम ज़िंदगी बना रहे हैं!

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