Uberrima Fides - Complete Faith
A Collection of Poems I have written, some pictures that I have clicked and few articles,poems etc which touched me. :-)
6 May 2023
A knot in my chest by ChatGPT
A Knot in my chest
13 Nov 2022
पहाड़
17 Sept 2022
जिंदगी
होवत होवत,
रोवत रोवत,
झूलत झूलत,
हसत हसत,
खावत खावत,
खेलत खेलत,
चलत चलत,
गिरत गिरत,
पढ़त पढ़त,
दौड़त दौड़त,
चीखत चीखत,
जोड़त जोड़त,
दौड़त दौड़त,
चीखत चीखत,
खरचत खरचत,
दौड़त दौड़त,
चीखत चीखत,
बसत बसत,
दौड़त दौड़त,
चीखत चीखत,
उजड़त उजड़त,
दौड़त दौड़त,
चीखत चीखत,
दौड़त चीखत,
चीखत दौड़त,
थकत थकत,
लेटत लेटत,
सोअत सोअत,
थकत थकत,
दौड़त चीखत,
चीखत दौड़त,
डरत डरत,
गिरत गिरत,
न उठट उठत,
मरत मरत,
गड़त गड़त,
या जलत जलत।
19 Mar 2022
जिंदगी की कश्मकश!
6 Oct 2019
अनलिखे शब्द
लिखते लिखते शब्दों को जाने कहां खो दिये,
चतुर दूरभाष यंत्र हाथ में लिए बैठे हैं। -२
उंगलियों पर अब स्याही के निशान नहीं आते,
अब सिर्फ कुंजियाँ टकटकाने की आवाज़ आती है, मेरे करीब से।-२
कुसमुसाई सी रहती हैं किताबें एक कोने में,
बेतार के तारों ने एक जाल है ऐसा कसा उनपर।-२
सिर्फ कभी हवा करने के काम आती हैं,
उनके पन्नों की, और पन्नों के बीच रखे गुलों की खुशबू,
विलुप्त सी हो गयी है, इन तारों के के बीच में।
कागज़, कलम, दवात, सब, हैं बक्से में बंद, -२,१
रोते होंगे शायद मेरी किस्मत पे। -२
चतुर यंत्रों से जो घिरा हूं मैं,
इन चतुरों के बीच कितना बुद्धु हूँ मैं।
के मेरे चार दोस्त चले गए मुझे छोड़, और मैं,
एक दुश्मन अपनी जेब लिए घूमता हूँ। -२
लिखते लिखते शब्दों को जाने कहां खो दिये,
चतुर दूरभाष यंत्र हाथ में लिए बैठे हैं।
शब्दकोश -
चतुर दूरभाष यंत्र - Smart Phone
स्याही,दवात - Ink
चतुर यंत्र - Internet of Things
कुंजियाँ - Keys of Keyboard
बेतार के तार - wireless connecttions
Inspired by Gulzaar's Poem - Kitaabein
9 Jul 2019
शीर्षक हूँ मैं
नाम हूँ मैं,
परिचय भी हूँ।
एक कविता का सार भी हूँ,
या यूं कहिये की शीर्षक हूँ मैं।
टीस जैसे आपके मन में उठती है,
जब कोई परिचित आपका नाम भूल जाता है।
वही दुख मुझे भी होता है,
जब कविता का सारा श्रेय पंक्तियों को मिल जाता है।
शीर्ष हूँ मैं,
और प्रथम भी,
और अव्वल भी।
इसलिए सोचा कि कुछ कहूँ अपने बारे में,
शीर्षक हूँ मैं,
अगली बार जब पढ़ियेगा एक कविता की पंक्तियां,
तो कुछ क्षण, कुछ तवज्जो, मुझे भी दीजियेगा।
शीर्ष हूँ मैं और शीर्षक भी।
9 Dec 2018
एकाग्रचित्त
व्यथित हूँ कि मन एकाग्र नहीं,
दूरदर्शन बक्से से नज़र हटती नहीं,
टटोलती रहती हैं उंगलियां हमारी,
चतुर दूरभाष यंत्र को,
विश्वव्यापी जाले में,
हम उलझ गए,
जहरीले मिश्रण को अन्तरजाल के,
हम नाक बंद कर गटक गए!
व्यथित हूँ कि मन एकाग्र नहीं,
अगर घर में हूँ, तो मन दफ्तर में,
अगर दफ्तर में हूँ, तो मन घर में,
खरीदी करता हूँ, तो पैसा बचाने की सोचता हूँ,
और पैसे बचाता हूँ, तो सोचता हूँ खरीदी की,
सपने देखता हूँ, कुछ कर गुजरने के,
सजग हूँ, तो सपने देखता हूं बिस्तर के,
व्यावहारिक स्थितियों के लिए देता हूँ भावनात्मक प्रतिक्रियाएं,
और भावनात्मक परिस्थितियों में यंत्रमानववत् प्रतिक्रियाएं!
व्यथित हूँ कि मन एकाग्र नहीं।।
शब्दकोश
1. दूरदर्शन बक्सा - Television
2. चतुर दूरभाष यंत्र - Smart phone
3. विश्वव्यापी जाला - World Wide Web
4. अन्तरजाल - Internet
5. यंत्रमानववत् - Robotic
6. भावनात्मक - Emotional
7. व्यावहारिक - Practical
18 Sept 2018
तो क्या बात होती।
खाली दीवारों से अगर घर बन जाता!
तो क्या बात होती।
इमारतों से अगर होती बस्ती!
तो क्या बात होती।
शून्य से नहीं सीधे सौ से शुरुआत होती!
तो क्या बात होती।
भुतहा हवेलियों मेंं अगर रात बेबाक होती!
तो क्या बात होती।
पतझड़ में भी अगर होती बहार!
तो क्या बात होती।
हाथ की लकीरों में गर किस्मत होती!
तो क्या बात होती।
अमावस भी पूर्णिमा सी रोशन होती
तो क्या बात होती।
झोपड़ी भी महल सी होती आलीशान,
तो क्या बात होती।
काम नहीं करना पड़ता पर तनख्वाह हाथ होती
तो क्या बात होती।
खुद से भी कभी अगर मुलाकात होती,
तो क्या बात होती।
आईने में अगर दिख जाती रूह,
तो क्या बात होती।
कुछ लिखना नहीं पड़ता फिर भी कविता कृत होती,
तो क्या बात होती।
17 Aug 2018
गुरुदेव तुम्हें नमन।
तुम्हारी 51 कविताएं
सीने में मेरे रहेगी हमेशा,
और
तुम्हारे स्वरों की गूंज
मेरे कानों में।
तुम्हारे शब्दों ने झकझोरा मुझे,
मेरे कवि को उसने जगाया।
तुम्हारे आदर में सर हमेशा झुकेगा,
और जब जब सर झुकाऊंगा,
करूँगा गुरुदेव तुम्हें नमन,
और काल के कपाल पर
मैं भी लिखूंगा मिटाऊंगा
गीत नया गाऊंगा।
मेरे अंदर के कवि के गुरु श्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित ।