23 Mar 2011

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी!

तन से तो हम सभी हो गए हैं बड़े
पर मन सभी के अभी भी बालपन में हैं पड़े 
कुछ हसीं सपने इस बालमन ने हैं जड़े

चाहता है बालमन मेरा
माँ की गोद में सर रखकर सोना,
छोटी-छोटी बातों पर सिसक सिसक रोना!
पापा के कंधे पर मेले की वोह सैर,
कांटे भरी बेरी से चोरी किये बेर!
भैया के संग-संग, उन संकरी गलियों में क्रिकेट का खेल,
हवा में तैरती पतंगों का वो मेल!
छोटी बहना को आखरी आम के लिए सताना,
आइसक्रीम वाले की ट्रिंग-ट्रिंग सुनकर, वोह मन का ललचाना!

ए मित्र, चाहता है बालमन मेरा,
तुम्हारे शुष्क होंठों पर हंसी लाना!
चाहता है बालमन मेरा, ए प्रिये,
तुमको फिरसे गले लगाना! 

No comments:

Post a Comment