1 Feb 2012

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?
जब चाहता हूँ अश्रू, तब ये हँसाती  है,
जब-जब चाहता हूँ हँसना, तब-तब ये रुलाती है!

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?
जिनके दीदार को तरसता है ये दिल,
उनके चेहरे का नूर हमेशा छुपाती है,
जिनसे भागना चाहता हूँ कहीं दूर,
उनकी शक्ल सुबह-शाम दिखलाती है!

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?
जिनके जाना चाहता हूँ करीब,
उनसे दूर ले जाती है,
पर इस  जहन्नुम की सारी मुसीबतों को,
मेरी झोली में ले आती है!

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?
इस अकेले से सफ़र में,
कुछ यारों से मिलाती है,
जिसका थामना चाहता हूँ हाथ,
वो भीड़ में गुम हो जाती है!

ये ज़िन्दगी भी अजीब है, है ना?
जब चाहता हूँ अश्रू, तब ये हँसाती है,
जब-जब चाहता हूँ हँसना, तब-तब ये रुलाती है!

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