1 Nov 2016

पंख खोलूं और उड़ जाऊं!

एक पहाड़ पर चढ़ूँ और चिल्लाऊँ,
या चलूँ भीड़ मैं, एक गाना गुनगुनाऊँ।
अपनों से गुम हो जाऊं
अनजानों को दोस्त बनाऊं।

पंख खोलूं और उड़ जाऊं
नीले गगन को गले लगाऊं।

इक घूँट भर पानी पी लूँ,
या दरिया सा प्यासा रह जाऊं।
कम्बल ओड मैं सो जाऊं
कुछ सपने और मैं बुन लूँ।

पंख खोलूं और उड़ जाऊं
नीले गगन को गले लगाऊं।

कठिन पहेलियों को बूझूँ,
या उनमें उलझ कर रह जाऊं।
अपने आप में शरमाऊँ,
या आगे बढूँ और तुमको रिझाऊँ।

पंख खोलूं और उड़ जाऊं
नीले गगन को गले लगाऊं।

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