5 Nov 2016

दीप तुम जलते रहो!

दीप तुम जलते रहो,

अन्धियारे को खलते रहो |

हम तुम्हारी रोशनी को,

हर पल संजोएंगे |

जो बुझती होगी बाति,

हम फिर उसे सुलगाएँगे |

गर ना मिलेगा कुछ ईंधन,

हम खुद ईंधन बन जाएँगे |

औरों को ए दीप,

प्रकाश तुम देते रहो |

दीप तुम जलते रहो,

अन्धियारे को खलते रहो!

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