1 Nov 2016

पराए!

हर दम हर पल
करूँ मैं उन्हें सुशोभित...
कंकड़, पत्थरों, काँटों से
करूँ मैं उनकी रक्षा...
कदम ताल में मैं करूँ
पग पग उनकी सेवा...
हर तरह के मल से
करूँ में उनकी सुरक्षा...

फिर भी पूजा के दिन क्यूँ में
रहूं घर के बाहर?
मंदिर के भीतर
क्यूँ ना करूँ में दर्शन?
कोमल तुम्हारे इन चरणों से
हर महत्वपुर्णा क्षण में क्यूँ रहूं मैं नदारद!
चरण ये तुम्हारे हैं अपने
और हम हो जाते हैं पराए!

पराए तुम्हारे जूते!

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