21 Jun 2010

वो और मैं

वो.....
वो जो भी है
मुझे 
माने न माने
चाहे न चाहे 
फिर भी
मैं
अपने अस्तित्व की तलाश में भटकता 
मैं
उसे चाहता हूँ
उसे मानता हूँ
और चाहता रहूँगा !
लेकिन कब तक?
शायद, इस प्रश्न का उत्तर भी मेरे ही पास है
मैं उसे चाहता रहूँगा
यह ज़िन्दगी रहेगी तब तक
यह सांस चलेगी तब तक
अनंत को छूने की चाह रहेगी तब तक
और 
विश्वास मेरा कहता है ये कि
इस धरती के रुकने से पहले
इस अम्बर के झुकने से पहले 
वो.....
वो जो भी है
मुझे मानने लगेगी
मुझे चाहने लगेगी
और फिर
एक अस्तित्व के साथ जिऊँगा 
मैं
हसूंगा, मुस्कुराऊंगा 
सारे गमों को भूल जाऊँगा 
लेकिन 
क्या उसको मिलूंगा ?
क्या उसको पाऊंगा ?
क्या उसको प्यार दे पाऊँगा ?

प्रश्न तो हैं अनंत 
उत्तर है एक !
पर क्या है 
इस बार मैं नहीं जानता 
अफ़सोस !

No comments:

Post a Comment